Saturday 7 July 2018

We the cow belt hindus should think twice and avoid the issues of non-hindi regions be it RW or LW



हम गौ पट्टी हिंदूओं को दो बार सोचना चाहिए और गैर-हिंदी क्षेत्रों के मुद्दों पर अपने विचार टालना चाहिए, चाहे वह RW हो या LW हो।  


चादर जितनी लम्बी हो पैर उतना ही पसारा जाना चाहिए। पर बात यह गलत हो जाती है जब हम उप, बिहार, झारखण्ड आदि क्षेत्रों के लोग पूरा भारत अपनी चादर समझ लेते हैं।  यह एक बड़ी गलती है।

हमें पता है की क्षेत्रवाद भारत में है और इसका असर दीखता है भारतीय राजनीति पर। जब कोई हिंदी भाषी या हिंदी व्यक्ति केरल, तमिल नाडु, बंगाल के बारे में अपने विचार रखता है तो उसे मलयाली या बंगाली गाली देते हुए कहता है की “ए गाय के गोबर, अपने गाय पट्टी को देखो पहले” “ये तेरा गाय पट्टी नहीं है” “यह केरल/बंगाल आदि है न की गंवार उत्तर भारतीय गाय गोबर पट्टी” वैसे तो इनसे भी ज्यादा अभद्र भाषा में गालियां दी जाती है दोनों तरफ से लेकिन गौ पट्टी वाला ‘मेरा भारत’ ‘मेरा देश’ राष्ट्रवाद आदि करता रह जाता है। सच तो वह है की हमें अभी अहसास नहीं हुआ की हम किसी गौ पट्टी के हैं। हम स्वयं को भारतीय ही ज्यादा समझते हैं, गलती करते हैं सम्पूर्ण भारत को अपना मान कर। यह वास्तविकता नहीं है। हमें अब अपना मुख अपनी तरफ करना होगा। हमारे क्षेत्रीय मुद्दों पर ही अपने विचार प्रकट करने होंगे, अपने ही लोगो से। सर्वविद्य है की अपने यहाँ मुद्दों की कमी नहीं है।

फिर यह सोच कर की यह तो केवल ऑनलाइन मूर्खता है तो फिर गलती कर रहे हो। क्या महाराष्ट्र, पंजाब आदि में भाइयों का अपमान नहीं होता? भाई अपने भैया लोग हैं ही ऐसे, माना, फिर उन दूसरे लोगो के पचड़े में हम क्यों पड़े? चाहे वो मराठा हो या द्रविड़नाडु, खालिस्तान या बंगाल, हमें कोई जरुरत नहीं उनपर कोई विचार प्रकट करने की। क्या गाली खाना हमारा शौक हो गया है?

रही बात राष्ट्रहित के चिंतन की, भाई ये जो हमें गाली देते हैं वो कम्युनिस्ट हैं, सेपरटिस्ट हैं, अलगाववादी हैं।  तो हम फिर गलती कर रहें हैं। जब किसी लिबरल को ये गैर हिंदी हिंदूवादी राष्ट्रवादी गाली देते हैं तो इनमें और उन अलगाववादियों के शब्दों में भी अंतर नहीं होता। जब कोई देहाती बच्चा अपना पक्ष रखता है तो जैसे लिबरल “गंवार, अनपढ़, बलात्कारी” बोलते हैं वैसे हिंदूवादी हमें “मुसलमानों द्वारा बलत्कृत माओं के वंसज” बोलते हैं। अगर द्रविड़नाडु अलगाववादी हमसे इसलिए नफरत करते हैं की “हमरी भाषा आर्य है जो संस्कृत से निकली है” तो वहीँ द्रविड़ हिन्दू इसलिए की “हमारी भाषा में अरबी, फारसी शब्द हैं” हमारे पूर्वजों की तरह हमारा संस्कृति, लोक मान्यताएं, बोली भाषा भी बलत्कृत है। वस्तुतः हम ही बहुत बड़ी गलती कर रहें हैं और लायक हैं इस दुत्कार के जब हम दूसरों के मसले में टांग अडा देते हैं। हम में लाख गलतियां हैं, एक सुधार ये हो की हम केवल अपने बारे में बोले, विचार करें और अपनी स्थिति बेहतर करें। जब तक हमारी आर्थिक सामाजिक स्थिति बेहतर न हो, जब तक हम दूसरे देशों में मार खाने न जाए। हमें ज्यादा तर्क और समय नहीं देना चाहिए न पंजाब न सिंध न गुजरात न मराठा न द्रविड़ न उत्कल न बंग पर। मेरी बातें अगर बुरी लगेंगी, क्षमा।