Monday 20 March 2017

क्या समलेंगिकता अपराध है?

क्या समलेंगिकता अपराध है?
लोगों की अनभिग्यता पर हँसी और घिन आती है! बात सिर्फ समलैगिकता को जायज या नाजायज समझने की नहीं अपितु अपने मोजूदा कानून को तोड़ कर एक हवा बनाने की है! कानून ने समलैगिकता को नहीं बल्कि कुछ किस्म के मैथून को अपराध की श्रेणी मै रक्खा है जैसे गुदा मैथून एवं मुख मैथून (anal and oral sex)! फिर चाहे स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से सम्भोगरत हों! ये कानून विषमलिंगियों पर भी लागू होता है!
रही बात प्रकृतिक एवं अप्राकृतिक की तो, हाथ कंगन को आरसी क्या?, शायद इसमे जिस तन लागे वो तन जाने वाली बात सार्थक होती है। जो प्रत्यक्ष है वो अप्राकृतिक कैसे? विकृति एव प्रकृति! क्या विमान मै जाना, कार चलना, जंगल कट बिल्डिंग्स बनाना और चंद पे जाना प्रकृतिक है?
रही बात संस्कृति की तो, जिस प्रकार हमारी 'ठेका देसी शराब' हमारी परंपरिक सुरा, मदिरा, मंदाकिनी, मयूरी आदि की बजाय पौआ और घटिया बदबूदार हानिकारक तत्व बेचते है वैसे ही ये 'ठेका देसी संस्कृति' वाले अपनी मनघरन्त संस्कृतिक मूल्यो का रोना रोने लगते है. आखिर वो किस संस्कृति की बात करते हैं?
किन्नर, एवं हिजिरा भारत मे एक प्रत्यक्ष समाज है। क्या ये कानून उनको नपुंसको की तरह ही रहने देगा?
प्राचीन भारत मे तो ऐसा ना था| ना ही मुस्ल्लिमो के राज्य में! और जो पास्च्यातिकरण को रोते है वही मध्यकालीन, एवं विक्टोरियन युगिय पास्चात्यीकरण के मानसिक गुलाम है! ये कानून भी हमारे great white masters की ही देन है! धर्मशाष्त्रो से लेकर कामशाष्त्रो तक इसके विरुध कुछ नहीं कहा गया | और रही धर्म की बात तो फिर क्यों ना हम सती प्रथा भी पुनः शुरु कर दे?
रही प्रकृति कि बात तो क्या चोरी करना, झूठ बोलना नहीं है? बलात्कार को आप किस श्रेणी में डालेंगे?
वस्तुतः  अप्राकृतिक किसी भी चीज के सही गलत का प्रमाण नहीं हो सकता। रही संस्कृति कि बात तो दहेज़ प्रथा भी हमारी ही संस्कृति है कि नहीं? फिर कानून की बात करूंगा, ये कानून समलैंगिको को अपराधी नहीं करार करता बल्कि सिर्फ गुदा, मुख और हस्ता मैथून को अपराधिक श्रेणी मे करता है| फिर कोन अपराधी नहीं है? एक और बात है, नैतिकता की बात करने वालो को कहूंगा "आन को लोमड़ शगुन बतावे आपण कुत्तवन से नुचवावे"

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